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भयावह समय / मदन कश्यप
Kavita Kosh से
परिवर्तन नहीं है गिरगिट का रंग बदलना
ऐसे तो नहीं बदलती है कोई चीज
बदलाव के पीछे का तर्क
इतना पीछे छूट जाए
कि उसका होना समझ में न आए
किसे पता था
शताब्दी के इस अंतिम दशक में
झूठ इतना फलेगा-फूलेगा
कि अपने ही भेजे में नहीं धंसेगा
अपनी भूख का सच
यह भयावह समय है दोस्तों
जब मुझे ही पता नहीं है
अगले पल क्या सोचेगा मेरा दिमाग
किस ओर मुड़े जाएंगे मेरे पांव
यह भयावह समय है
और इस समय सबसे ज्यादा जरूरी है
अपने भीतर के लालच से लड़ना!