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भय, व्याकुलता, क्रोध, निराशा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(तर्ज-लावनी-ताल कहरवा)
भय, व्याकुलता, क्रोध, निराशा, चिन्ताको दो पूरा त्याग।
छोड़ो मोह-विषाद, बुझा दो वैर-द्वेषकी भीषण आग॥
आशा धैर्य, शान्ति-साहस हों, पूर्ण भरा मनमें उल्लास।
निश्चय हो साफल्य-सिद्धिका, रहे पूर्ण प्रभुपर विश्वास॥
रहो सदा प्रभुके शरणागत, प्रभुके लिये करो सब काम।
रहो अचल सत्पथपर, लेते रहो सदा श्रीहरिका नाम॥
प्रभु-आश्रयके साथ रहेगा जहाँ नित्य सत्कर्मोत्साह।
विजय, विभूति, कीर्ति, श्री, निश्चित नीति रहेंगी वहाँ अथाह॥