भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भरत मंडल की माँ / जय गोस्वामी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नंदीग्राम में प्रतिरोध की पहली पाँत में जो महिलाएँ खड़ी थीं, उनका आवेग सही नहीं था।
--नंदीग्राम के बारे में सुनील गंगोपाध्याय


बूढ़ी बोलीं-
'मेरा एक बेटा तो गया
दूसरे को भी वे ले जाएँ
मेरे इन हाथों को देखो बेटा...`
कह कर उन्होंने उठाए अपने कांपते,
नस निकले हाथ,
और दिखाए...
इन दो हाथों से
खेत के सारे काम
निपटाए हैं मैंने अब तक,
इन्हीं हाथों से
ज़मीन को छीने जाने से रोकूँगी।`

मौसी-माई, आपके पास
ईंट भट्ठे में छुपाए गए हथियारों का जख़ीरा
नहीं है,
मौसी-माई, आपके पास
हथियारों से लैस पुलिस नहीं है
मौसी-माई, आपके पास
चप्पल पहने, पुलिसिया वरदी में
हज़ारों कैडर नहीं हैं,
फिर भी इतनी ताक़त
आप लाती कहाँ से हैं?

यह मुझे पता नहीं
सिर्फ इतना जानती हूँ

कभी कभी देवी दुर्गा
किसान की माँ बन कर
हम लोगों को दर्शन देती हैं...

     
बांग्ला से अनुवाद : विश्वजीत सेन