भरत मण्डल की माँ / जय गोस्वामी / विश्वजीत सेन
नन्दीग्राम में प्रतिरोध की पहली पाँत में जो महिलाएँ खड़ी थीं, उनका आवेग सही नहीं था।--नंदीग्राम के बारे में सुनील गंगोपाध्याय
बूढ़ी बोलीं —
'मेरा एक बेटा तो गया
दूसरे को भी वे ले जाएँ
मेरे इन हाथों को देखो बेटा...`
कह कर उन्होंने उठाए अपने काँपते,
नस निकले हाथ,
और दिखाए...
— इन दो हाथों से
खेत के सारे काम
निपटाए हैं मैंने अब तक,
इन्हीं हाथों से
ज़मीन को छीने जाने से रोकूँगी।`
— मौसी-माई, आपके पास
ईंट भट्ठे में छुपाए गए हथियारों का जख़ीरा
नहीं है,
मौसी-माई, आपके पास
हथियारों से लैस पुलिस नहीं है
मौसी-माई, आपके पास
चप्पल पहने, पुलिसिया वरदी में
हज़ारों कैडर नहीं हैं,
फिर भी इतनी ताक़त
आप लाती कहाँ से हैं?
— यह मुझे पता नहीं
सिर्फ इतना जानती हूँ
कभी कभी देवी दुर्गा
किसान की माँ बन कर
हम लोगों को दर्शन देती हैं...
बाँग्ला से अनुवाद : विश्वजीत सेन