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भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो / तारा सिंह
Kavita Kosh से
भरी महफ़िल से आँखें बचाकर जो
तूने मुझे अपने गले से लगाया
वीरानों में बहार आ गई , दिल-ए-
नाशाद को मुद्दतों बाद चैन आया
जो जमाने के तूफ़ां की मौज से बचे
हम, तो फ़िर मिलेंगे,गर खुदा मिलवाया
फ़ुरकत की आग में सब कुछ जल गया
मेरे ही मुख से यह बयां क्यों करवाया
दुनिया में हर एक से इन्सानियत का
वार नहीं उठता, जो आज तूने उठाया