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भर्यो समंदर धूड़ सूं / नीरज दइया
Kavita Kosh से
मन रै पांख्यां लागी
हियै ऊंडी आसा जागी
न्हासतां-न्हासतां
म्हैं कठै-कठै नीं पूग्यो
भळै सामीं ऊभो हो
भर्यो समंदर धूड़ सूं
धोरै माथै
भरमावतो भरम
आस अमर धन म्हारो
भटकूं इण रिंधरोही
मालक! मरणो है मंजूर
पण तिरसायो मत मार!