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भर आयी आंखें भी नहीं छलकी हैं कई दफा / सांवर दइया
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भर आयी आंखें भी नहीं छलकी हैं कई दफा।
किसने समझा यहां उन आंसुओं का फलसफ़ा।
दुनिया ने देखी है उनकी छाया सदा हम पे,
किसे होगा यक़ीन, उनके कारण हुआ हादसा।
इस तरफ़ जो भी बिखरे, रंग-बदरंग बिखरे,
दूसरी तरफ अब भी रखा है कोरा एक सफ़ा।
कुछ इस तरह बनकर तैयार हुआ है घर अपना,
छांव यहां तक आती नहीं, धूप रहती है सदा।
आपको यक़ीन हो या न हो, लेकिन सच जानिए,
हाथ ऊपर उठा खुशी से मांगी है आज कज़ा!