भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भला जो सोचता है सबका, सब उसको रुलाते हैं / शुचि 'भवि'
Kavita Kosh से
भला जो सोचता है सबका, सब उसको रुलाते हैं
ज़माने वाले जाने कौन सा रिश्ता निभाते हैं
सितारों हम से भी होता है ज़ुल्मत का जहाँ रौशन
शरारे ख़ाक हो जाते हैं तो हम दिल जलाते हैं
ख़ुदा के पास जाऊँ तो करूँगी ये शिकायत मैं
कि औरत को ही वो क्यों इस क़दर नाज़ुक बनाते हैं
हम उनसे दिल लगाते हैं अकेलेपन से बचने को
वो दिल को तोड़कर कैसा दिली रिश्ता निभाते हैं
जिन्हें हम पूजते हैं और दिल से चाहते हैं हम
ज़रूरत पर वही ‘भवि साथ अक्सर छोड़ जाते हैं