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भले आदमी / भवानीप्रसाद मिश्र
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भले आदमी
रुक रहने का पल
अभी नहीं आया
बीज जिस फल के लिए
तूने बोया था वह फल
अभी नहीं आया तेरे वृक्ष में
टूटती हुई साँस की डोर को
अभी जितना लंबा खींच सके
खींच
सींच चुका है तू
वृक्ष को अपने पसीने से
अब अपने ख़ून से सींच !