भवसागर का रत्न वही है जिसमें कुछ निर्मलता है / बिन्दु जी
भवसागर का रत्न वही है जिसमें कुछ निर्मलता है,
धन्य पुरुष है वही कि जिसका नाम जगत में चलता है।
रामचन्द्र श्रीराघव ने इस जग में धर्म प्रकाश किया।
कर्म् वीरता दिखलाकर खल रावण-वंश विनाश किया।
केवट भील और कपिकुल को प्रेम प्रथा से दास किया,
इसीलिए, श्रीराम नाम पर भारत ने विश्वास किया।
इन नामों से नर जीवन का वृक्ष फूलता फलता है।
धन्य पुरुष है वही कि जिसका नाम जगत में चलता है।
नाम हुआ बृज में कृष्ण कन्हैया रूप निराले का,
कर्म किया वीरों का जिसने भेष बनाया ग्वाले का।
पूर्ण किया मद कालिंदी में कलि विषधर काले का।
अब तक भारत में घर-घर यश छाया वंशीवाले का
मन से कृष्ण नाम कहते हीं मन का पाप निकलता है।
धन्य् पुरुष है वही कि जिसका नाम जगत में चलता है।
रघु, दिलीप, शिवि से राजा थे याचकता हरने वाले,
सत्य वचन पर हरिश्चन्द्र दशरथ से मरने वाले
हनूमान श्रीभरत विभीषण भक्ति भाव भरने वाले,
इन लोगों के नाम हुए आदर्श अमर करने वाले।
ऐसे ही सत्कर्मों से कुछ भूमि भार भी टलता है,
धन्य पुरुष है वही कि जिसका नाम जगत में चलता है।
नर की शोभा और बड़ाई धर्म नाम से होती है,
बदनामों के दर्शन में कवियों की कविता रोती है।
क्या-क्या है सीप ‘बिन्दु’ सत्कर्म सीप का मोती है,
ग्रन्थ सूत्र में इन्हीं मोतियों की लेखनी पिरोती है।
जिसकी शरण मात्र से जीवन का मार्ग सम्हलता है,
धन्य पुरुष है वही कि जिसका नाम जगत में चलता है।