भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भसकि गेलै ना / चन्द्रमणि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भेटल जे चिट्ठी पढ़लौं धेआन सँ
आबैछी गाम जानि फुललौं गुमान सँ
कसमस तन आँगी मसकि गेलै ना
पिया, डाँरहि पर घैला भसकि गेलै ना
चानन सग आंगन आ दुअरा बहारि दियै
कहने छी भोरक बयास सँ
आयब जै बाटे तइ रस्ता पर ठाढ़ रहै
कहने छी मोनक कहार सँ
नाचब हम कोना से आयब तऽ देखबै
कहलौं हम फुसिये, यौ लाजे तऽ मरबै
करबै की ? मोने सनकि गेलैना।। पिया।।
पनिघटसँ पानिक घट भरिकऽ अबैत छलौं
गमकै छल गेना गुलाब
हमरे सिहाकऽ फूल पर भमरा
नाचै छल पीकऽ पराग
हायग दाइ! बेसुधमे ई की केलियै
जाइके छलै आंगन दलान चलि गेलियै
करबै की ? डेगे बहकि गेलैना।। पिया।।
जगलेमे सपना सन आबि जाउ प्रियतम
जमिकऽ लगायब सचार
बियनि डोलायब मनसँ निहारब
सजबै हम सोलह सिंगार
दुर जाउ! उतारा कि सोचब अंगोर
चिक्कस सनैत छलौं बनलैये घोर
करबै की ? हाथ सहकि गेलै ना।। पिया।।