भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाई रे! ऐसा पंथ हमारा / दादू दयाल
Kavita Kosh से
भाई रे! ऐसा पंथ हमारा
द्वै पख रहितपंथ गह पुरा अबरन एक अघारा
बाद बिबाद काहू सौं नाहीं मैं हूँ जग से न्यारा
समदृष्टि सूं भाई सहज में आपहिं आप बिचारा
मैं,तैं,मेरी यह गति नाहीं निरबैरी निरविकरा
काम कल्पना कदै न कीजै पूरन ब्रह्म पियारा
एहि पथि पहुंचि पार गहि दादू, सो तब सहज संभारा