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भागे नेवतहरी वस्त्र छोड़ि-छोड़ि द्वारन पे / महेन्द्र मिश्र

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भागे नेवतहरी वस्त्र छोड़ि-छोड़ि द्वारन पे,
भूत-प्रेत देखि-देखि माई-बाप कीन्हों हैं।
कोई गिरे खाढ़ी दाढ़ी मोछ के ठेकाना नाहीं,
रोवे बाल वृद्ध कोई आपनों न चीन्हों हैं।
रहेंगी बातें यह तो कहे कि बचिहे जो प्राण,
हल्ला है महल्ला बीच माई-बाप कीन्हों हैं।
द्विज महेन्द्र भालचन्द्र वाले की बारात ऐसी।
त्यागे ही भली है ना त अपयश खूब लीन्हों हैं।