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भाग चले सब / विष्णुकांत पांडेय
Kavita Kosh से
रेंक - रेंक कर गदहा बोला —
चलो, चलें घर, यार !
भूखा हूँ, खाने दो जीभर —
बोला चतुर सियार ।
घड़ी देखकर भालू बोला —
बीत गई अब रात,
भाग गए वन को सबके सब
भली लगी यह बात ।