भाग 11 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि
कवित्त
सबसे बड़ा है साहजादा बादसाह का जो,
भेजना जरूर, देर करना जरा नहीं।
खासे जे तुरंग हैं सवारी के हमारे, तिन्हें-
घास खोद लावै औ’ खिलावै, बैठकै तहीं।
बेटी साह की है जो, विवाह करि मेरो देय,
भेजो मरहट्टी मीर तरफत है सही।
ज्वाब देव मोल्हन पठाय देव तीनो चीज,
राखियौ हृदै में याद बात ये जिती कहीं॥101॥
प्राचीन दोहा
सिंह-भोग सत्पुरुष-बच, कदली-फल इक बार।
तिरिया-तेल, हमीर-हठ, चढ़ै न दूजी बार॥102॥
भले पुरुष को बचन औ’, पिता एक ही होत।
कहियो ऐसे साह सों, करि कुछ बचन उदोत॥103॥
करि सलाम मोल्हन चलौ, पहुँचौ दिल्ली माहिँ।
बादसाह बैठ्यो तखत, जोवै आस उमाहिँ॥104॥
झुकि-झुकि करै सलाम बहु, कर जोरै सिर नाय।
कहि न सकै, चुप ह्वैरह्यो, तेज-त्रास ठहराय॥105॥
शाह उवाच
तबै साह बोले, कहा ज्वाब लायौ।
भयो मौन कैसे, कहा सोच छायो॥
कहाँ मीर महिमा मंगेाल टिकायौ।
कहाँ धन-रतन लाय करिकै धरायौ॥106॥
मोल्हन उवाच
कहाफेर मोल्हन बकसि जान पावं।
तबै सब हवालं वहाँ के सुनावं॥
शाह उवाच
सुनत साह बोले सबै माफ तेरी।
कही सोइ कह दे, न कर और देरी॥107॥
जबै अर्ज मोल्हन जु करने लगा है।
नहीं हुक्म माना, उहाँ तो दगा है॥
कही बात मैंने बनाकर बहुत सी।
दई दाब सिगरी, नहीं नैकु उकसी॥108॥
दोहा
और कही जो बात उन, सो कहिबे की नाहिँ।
कहे बिना नहिँ बनत है, यातें कहियत चाहिँ॥109॥
कवित्त
माँगा साहजादा आपका है घास खोदिबे कों,
बेटी आपकी सों चहै ब्याह किय अपना।
तीजे मरहट्टीबर बेगम को माँगता है,
देखै मीर महिमा उसी का रोज सपना।
तीनों चीज जात ही जरूर भेज दीजौ हमें
भेजैगा न जो पै तौ तपाऊँ लौह तपना।
तेगा गहि पानि तें, निकासे डारै म्यान तें, सु-
बकस जुबान तें जतावै हठ अपना॥110॥