भाग 21 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि
दोहा
पातसाह के कटक कों, पैठ गई नृप फौज।
हनै बहुत ही तुरक जब, भूपति करकै मौज॥212॥
छन्द
किते सीस हीनं, किते पग विहीनं।
किते जंघ टुकड़े, किते भुज नगीनं॥
किते कर परे हैं, किते पेट न्यारे।
किते कान-ग्रीवा, किते अंग सारे॥213॥
किते जाय भाजे बिना पाग सिर पर।
किते तेग डारैं न देखैं सिखर पर॥
किते पाँय नंगे, किते सर्व नंगे।
किते ही भजे हैं जहाँ अर्ध अंगे॥214॥
भजे जायें लूले, भजे जायें आँधे।
भजे जायें केते धरे घास काँधे॥
किते रूप पलटें भये संतरंगं।
पुकारैं कहैं हम नहीं साह संगं॥215॥
दोहा
बादसाह जब यों लख्यो, निज दल को बेहाल।
तब भाज्यो लाज्यो महा, जान्यो काल कराल॥216॥
हाथ बढ़ाय-बढ़ाय कै, करै इसारा आप।
भजो, भजो, जल्दी भजो, आई नाहर थाप॥217॥
ज्यों के त्यों रन में रहे, डेरा अरु असवाब।
बादसाह गयो भाजिकै, रही न तन में ताब॥218॥
कवित्त
डेरा पातसाह के पर्यो जो रह्यो ताही ठौर,
भूपति कटक लाग्यो लूटन सो जाको है।
वाही समै भूप के निसानची निसान लैकै,
दिये गाढ़ि रेत में, करैं सु लूट ताको है।
देवनेत वाही समै, पबन प्रबल भई,
झुकिकै निसान गिरे होनहार वाको है।
श्री हम्मीरदेव महाराज की भई है फतै,
वीरता दिखाय कियो जग में जु साको है॥219॥