भाग 8 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि
दोहा
ऐसैं जब भूपति कही, तबै मीर धरि धीर।
रहन लग्यो नित मुदित मन, रहे हजूर हमीर॥72॥
अब कहियत है पूर्व की, कथा जथामति जोर।
बादसाह दूजे दिवस, बैठे सहित मरोर॥73॥
दूर करीं सब पास की, जेती हुतीं खबास।
मरहट्टी बुलवाय कै, पूछी कहु अब हास॥74॥
मरहट्टी उवाच, (कवित्त)
हाथ जोर नाथ आगे, माथ निहुराय करि,
बोली मरहट्टी बनी बात ऐसै भायकै।
गई ही सिकार, मृग पाछैं मैं भजायौ हय,
कूदगो कनात मृग मेरो भास पायकै।
मैं भी तो कुदाय अस्व बाहर निकसि गई,
मृग तौ न पायो छिप्यो झाड़िन में जायकै।
देख्यौ मीर महिमा मंगोल वहाँ बैठ्यो तब,
रहस आस वाके पास पहुँची मैं धायकै॥75॥
देख वाके रूप को रह्यो न मन हाथ मेरो,
ताके साथ भोग मैं कियोई चित चायकै।
तहाँ एक नाहर निकसि आयो तेह भरो,
देख मीर वाको, लई धनुष उठायकै।
आसन न त्यागो, सर तान मार्यो ताही ठौर,
लागै सर एक वाके प्रान गये धायकै।
ऐसी लखि सूरता हँसी ही मैं हजूर पास,
आप एक मूसा मार्यो आसन छुड़ायकै॥76॥
दोहा
बादसाह सुन वचन ये, ठाढे भये रिसाय।
मारौं कैसे ताहि अब, लई जान बकसाय॥77॥
कवित्त
आये आमखास कहँ तखत निवास, खास-
पास में बिठाये जे मुसाहब सलाह के।
करिकै विचार हरकारे बुलवाय लिये,
देस-देस भेजे, लाव खबर उमाह के।
महिमा मंगोल मीर कहाँ गयो, राख्यो किन,
भये हैं अभाग वह कौन नरनाह के।
दियो यों हुकम तब कासिद दवरि गये,
लाये बेग खबर सबै ही राजगाह के॥78॥
दोहा
कासिद ने आकर कही, सुनिये हजरत बोल।
रनथंभौर किला बिकट, तहाँ मीर मंगोल॥79॥
लघु नाराच
हमीरदेव नाम है, नृपति छत्री बाम है।
सिपाय लैस धाम है, न काहु रीत छाम है॥80॥