भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाड़ / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
गर्मी जो आयी
तो लाई लपट लू
जल उठा भड़भूजे का भाड़
उसने भी लाई की ,
- कि शुरू भुनाई।
इतनी भुनाई की , इतनी भुनाई,
कि लाई कड़ कड़ाई जैसे हाड़
प्यास लगी पानी पिया
उसको पसीना हुआ
इतना पसीना हुआ इतना पसीना
कि लाई उतराई जैसे माड़।