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भादब / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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झक झक सौँसे बाध करय
आ’ लक-झक खेतक आरि रे!
चकमक चानी पीटि देलक अछि
अबितहिं ई भदवारि रे!
घन घमण्ड घहरय, हिय हहरय
हरय मनक उल्लास ई
बिजुरि छटा छीनय छनछन मे
विरहिनि - मन - विश्वास ई

कड़कि उठय कड़का कापय मन
कण कण व्यापल त्रास ई
भय सँ आकुल भेल भयाओन
आयल भादव मास ई


बलिक डरेँ की इन्द्र कुलिशकेँ
रहला फेर सम्हारि रे!
की कठोर ऊषम केँ वर्षा
रहलि आइ ललकारि रे!

बुन बुन बुन बुन मेघ करय
आ’ गुन गुन पावस राग ई
झन झन झिंगुर झनकि रहल अछि
जागल बेङक भाग ई

गुनिधुनि गुनिधुनि मन करइत अछि
कर कर कुचरय काग ई
उन्मन मन मे जागि उठल अछि
सूतल चिर अनुराग ई

जनिक पिया परदेशी से धनि
बैसलि छथि मन मारि रे!
धह धह कोँढ़ जरइ छनि
बाहर अछि भदवारि रे!

डूबल खेत पथार, ढहल घर
बढ़ल मनक सन्ताप तेँ
नोर झोर मे सानलि बसुधा
करइछ आइ विलाप तेँ

कुहरि उठइ छथि जा कय दिनकर
अस्ताचल पर साँझ मे
चोर जकाँ घोँसिऐल रहइ छथि
दिन भरि मेघक माँझ मे

कखनहुँ क्रोधेँ लाल आँखि ओ
दइ छथि आबि पसारि रे!
चतुर गृहस्थ मुदा अवसर पर
लइ छथि काज ससारि रे!

नदी - नहरि - नाला - उाबर-सर
उमड़ल अछि मद-माँति रे!
जनिकर बीया पड़ल खेत मे
हरिअर तनिके काँति रे!

कृषक - किशोरी मधुमय स्वर मे
गबइछ राग मलार रे!
क्षितिजक कोँर पकड़ि धरणी केँ
करइछ मेघ दुलार रे!

धन-भादव भू-भार हरण-हित
अवतरलाह मुरारि रे!
चौठी चानक पूजा कय सब
रहल कलंक बिसारि रे!