भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भान : : तीन / गौरीशंकर
Kavita Kosh से
टाबरां री आंख्यां में
देख्यो
बसतो गांव
खड़ी ही टाबरां री टोळ
उड़ीकै ही
भान फैकणीयै
हाथां री करामात नै।