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भारतमाता के देश में / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
Kavita Kosh से
वे घोड़े नहीं
जो बार-बार चाबुक चलाया जा रहा है
वे भूली नहीं हैं
जो मनुस्मृति वर्षों से दोहराया जा रहा है
वे अगरबत्ती नहीं
कि उनसे पूजाघर महकाया जा रहा है
वे कठपुतली नहीं
जिन्हें मनमर्जी नचाया जा रहा है
बेचने को है बहुत कुछ
पर उन्हें सबसे बड़ा बाज़ार बनाया जा रहा है
वे औरतें हैं हुज़ूर
आज भी
सिर्फ़ उन्हें
अनुशासन का महान पाठ पढ़ाया जा रहा है
जबकि सुना है आजकल
तेजी से हमारा देश बदला जा रहा है!