पहले पहल जब मैं तुम्हारे चुम्बकीय क्षेत्र में खिंचा हुआ आया
तुम्हारी धुरी के चारों ओर मैंने जब
एक नक्षत्र की तरह
दिन-पर-दिन चक्कर-पर-चक्कर लगाया
मेरी चेतना में तुम्हारी चेतना का प्रकाश अवतीर्ण हुआ
मुझे दिखाई देने लगा
मेरा ही अपना मानवीय व्यक्तित्व परम संकीर्ण हुआ
नजर में अपनी ही लगने लगा मैं
संसार का पैदायशी बौना
भंग हो गई मेरे ज्ञान की
भाववादी भंगिमाएँ
जीवन जीने की मेरी
संस्कारवादी परंपराएँ
रचनाकाल: २०-११-१९७५, रात