भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भारत-सुषमा - ३ / यदुनाथ झा 'यदुवर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जननी जन्मभूमि सम सजनी
मम प्रियनहि किछु, आन,
देश विदेश भवन वन सजनी
अनुछन रहु हुनि ध्यान।
हुनक दुःख लखि दुःखित सजनी
सुखित रहिय सुख हेरि,
सुयश तनिक नित गाविय सजनी
पाविय आनन्द ढेरि।
शान्ति रूप जे एहि भव सजनी
सब विधिगुण आगारि,
देखि चित्त मोहित अति सजनी
प्रकृति जनिक सुखकारि।
सुजल सुफल युत पुनि लसु सजनी
कुसुमित कानन कुंज,
श्यामल तरुवर शोभित सजनी
लोभित मधुकर पुंज।
शस्य शालिसँ भूषित सजनी
दूषित दोष विकार,
मलय पवन बह सुखकर सजनी
जकर सुगन्धि अपार।
चिन्तामणि सुकल्पतरु सजनी
करुणामयि सुखधाम,
हिनि सम के जग दोसर सजनी
यदुवर पूरणिकाम।