भारत भुइं तुम्है बोलाय रही / उमेश चौहान
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ
झाखरु कटिगा मुलु ठूंठु ऐसि, अब ना ख्यातन मां खड़े रहौ
सोने कै चिड़िया माटी भै, कुछु मति हमारि अस काटी गै,
सत मंजिला कै बसि नींव सुनौ खाली बरुआ ते पाटी गै,
ढहि गईं मंजिलै अलग न तुम निचली मंजिल मां पड़े रहौ
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ
भुइं मोरि चंदरमा ऐसि रहै, मुलु राहु-केतु सब गांसि लिहिन,
परदेसी चतुर चिरैयन का चुपके लासा मां फांसि लिहिन,
अब इधर बढ़ौ या उधर बढ़ौ, ना चौराहे पर खड़े रहौ
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ
तुम्हरे असि जूनन के द्वारा जो मानवता का बोझु बंधा,
वहु छूटि बिथरि गा मुला तबौ जूना अस ऐंठबु तुम्हैं सधा,
चिलवलि की तितुली जैसे तुम ना हवै हवा मां उड़े रहौ
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ
मंगता कुबेर के लरिका भे, हथिनी के पैदा मूसु भवा,
उइ कांटा पांयन सालि रहे जिनके बेरवा हम खुदै बोवा,
बिनु मढ़े ढोलकिया ना बाजै सो बार-बार तुम मढ़े रहौ
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ
तुम पांच रहौ अब अनगिनतिन, च्यातौ अब तत्व बिचारि लेव,
अपनत्व छूटि गा दुनिया ते, अब आपन स्वत्व संभारि लेव,
तुम गदहा, घोड़ा के संकर, खच्चर पर अब ना चढ़े रहौ
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ
तुम का कुपंथ कै अमरबेलि हरियर बेरवा असि झुरै दिहिसि,
मेहनति तुम्हारि सब फुरि होइगै, बिसु भरा घाव कोउ दुखै दिहिसि,
अब सजग होउ ना माटी के माधौ बनिकै तुम परे रहौ
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ