भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाव कुंद कर दे वो पैमाना न दरमियान रख / प्रकाश बादल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
भाव कुंद कर दे वो पैमाना न दरमियान रख।
मेरे ख्यालों की बस ऊंची उड़ान रख।

दिल से दिल का कोई फासला न हो,
कुछ इस सलीके से गीता और कुरान रख।

बहुत हुई महलों की फिक्र, छोड़ दे,
बेघरों के हिस्से में भी कोई मकान रख।

बस्तियां रौंद लेगी ये नदी रोकी हुई,
ज़रूरत से ज़्यादा न तू अपना विज्ञान रख।

अश्ललीलता को जो तालीम मान बैठै हैं,
उन बच्चों के ज़हन में बड़ों को सम्मान रख।

तिलमिला उठा वो, जो मैने ये गुज़ारिश की,
मेरे होठों पर भी थोड़ी सी मुस्कान रख।