भाषा की विपत्ति / शलभ श्रीराम सिंह
व्याकरण भाषा का पीछा कर रहा है
पीछा कर रहा है सौन्दर्यशास्त्र
भाषाविज्ञान पीछा कर रहा है उसका ।
चिता से उठकर आधी जली स्त्री की तरह
भाग रही है भाषा
उसके जले-खुले अंगों से छिटक रहे हैं शब्द
अर्थ छिटक रहे हैं उसकी चीख़ की दरार से ।
कवि ! क्या कर रहे हो तुम ?
तुम्हारे जन्म का जश्न पृथ्वी ने भाषा में मनाया था
भाषा में पढ़ा जाएगा तुम्हारी मृत्यु का सम्वाद !
बची हुई भाषा का उपचार
उसे बचाए रखने का उपक्रम
उसकी चीख़ के पक्ष में चीख़े बिना कैसे कर पाओगे तुम ?
चीखो ! कि तुम्हारी चीख़
शब्दों और अर्थों को
झरने और गिरने से रोक सकती है
भाषा की चीख़ की बग़ल में खड़ी करो अपनी चीख़ !
तुम्हारी चीख़ व्याकरण को रोक सकती है
रोक सकती है सौन्दर्यशास्त्र और भाषाविज्ञान को
भाषा की विपत्ति में तुम्हारी चीख़ का दर्ज किया जाना
ज़रूरी है, कवि !