भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीगना / नवनीत पाण्डे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसात हुई
पूरी तरह भीग गया मैं
पर तुम..!
बिल्कुल भी न भीगे
बहुत चाहा मैंने-
तुम भीगो
चुल्लू में भर पानी भी फ़ेंका- कई बार
पर तुम नहीं भीगे
छू भी नहीं पाई कोई बूंद तुम्हें
मैं हैरान हूं
ऎसा कैसे हो सकता है?
भरी बरसात में निपट सूखा
कोई कैसे रह सकता है?
हां, अब मैं जान गया हूं
जानने के बाद
थोड़ा और भीग गया हूं