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भीड़ में है कौन अपना आज़माना चाहिये / सूरज राय 'सूरज'

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भीड़ में है कौन अपना आज़माना चाहिए.
मखमली रस्ते में अब काँटे बिछाना चाहिए॥

दर्दे-दिल जागे तो उसको यूँ सुलाना चाहिए.
रुई लगा के कान में सीटी बजाना चाहिए॥

आइने को छोड़ के पूछे कोई कैसे हो तुम
माँ ये कहती थी, कुशलता ही बताना चाहिए॥

मन्दिरो-मस्ज़िद बना डालीं दुकानें आपने
आप ही कहते थे रोतों को हंसाना चाहिए॥

आपने इक पल में ही सब कुछ भुला डाला, मगर
एक पल भी भूलने हमको ज़माना चाहिए॥

फ़र्श में माँ-बाप को जिसने सुलाया उम्र भर
कह रहा है क़ब्र में ढंग से सुलाना चाहिए॥

गर यक़ीं में कोई अपने राज़ बतला दे तुम्हें
फिर उन्हें दुनिया तो क्या ख़ुद से छुपाना चाहिए॥

वक़्त मेरी ताकते-बर्दाश्त पर कल कह उठा
यार सच तुझको तो कब का टूट जाना चाहिए॥

पत्थरों से आइनों का टूटना रुक जायेगा
कम से कम हर शहर में कोई दीवाना चाहिए॥

अर्ध्य "सूरज" को चढ़ाना शास्त्रों में है मगर
सर कभी घर के दियों को भी झुकाना चाहिए॥