भीड़ में / निकअलाय रेरिख़ / वरयाम सिंह
तैयार है मेरा परिधान
अब मैं मुखौटा पहनूँगा
हैरान न होना, मेरे मित्र !
यदि डरावना लगे तुम्हें यह मुखौटा
आख़िर यह छद्म - मुख ही तो है
निकलना होगा हमें घर से बाहर
किससे होगी हमारी भेंट ?
हमें यह मालूम नही
मालूम नही, अपने को दिखाने के उद्देश्य
ढाल लेकर रक्षा करो
हत्यारों के प्रहारों से
तुम्हे यह मुखौटा अच्छा नही लगता क्या ?
उसकी शक़्ल क्या मुझसे नही मिलती ?
भौहों के नीचे क्या आँखे दिखाई नही दे रही ?
माथा कुछ बड़ा बना है क्या ?
शीघ्र हम उतार देंगे छद्म मुख
और मुस्कराएँगे एक-दूसरे की तरफ़ देखकर
अब हम शामिल हो जाएँगे भीड़ में
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए
Николай Рерих
В толпу
Готово мое одеянье. Сейчас
я маску надену. Не удивляйся,
мой друг, если маска будет
страшна. Ведь это только
личина. Придется нам
выйти из дома. Кого мы
встретим? Не знаем. К чему
покажемся мы? Против свирепых
щитом защищайся.
Маска тебе неприятна?
Она на меня не похожа?
Под бровями не видны
глаза? Изборожден очень лоб?
Но скоро личину мы
снимем. И улыбнемся друг
другу. Теперь войдем мы
в толпу.