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भीड़ / गौतम अरोड़ा
Kavita Kosh से
भीड़
च्यारूंमेर भीड़
दौड़-भाग
ठसौ-ठस फसयोड़ा मिनख
एक लारै भागतौ एक
मिनख में मिनख फसयोड़ो
बातां में बात
हाकै में दबती आवाज
के दोरो सांस लेणौ।
हर आदमी
खबण बणन री दौड़ में
जिकां बण्या खबर
वै इतिहास में मंडण री दौड़ में
अर जिका इतियासू व्हैगा
वे पाछा खबर री दौड़ में
भीड सूं अळगो
एक खूणै, बैठ म्हैं
मुळकूं भीड़ माथै
स्यात, भीड़ सारू अछूत हूं मैं
करूं इण खूणै
सिरजण, मुळक रो।
मुळक,
नी व्है बासी अर नी व्है इतिहासू।