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भीतर वाला शब्द / राजेश कुमार व्यास
Kavita Kosh से
तुम शायद कुछ
कहना चाहती हो
स्वयं अपने से
या कि मुझसे।
मैंने सुनी है सांसे,
सुनी है धड़कनें,
औचक,
बार-बार,
तो कह दो,
मैं आतुर हूं
तुम्हें सुनने के लिए।
होंठ तो खोलो,
शब्द तो बोलो,
बिना होंठो के शब्द
मैं कैसे पहचानूंगा,
कैसे जानूंगा
हृदय का तीव्रतर
होता स्पन्दन?
अरे!
शायद तुम कुछ
बोली हो,
तो क्या-
शब्द के भीतर भी
होता है कोई शब्द?
अगर हॉं,
तो याचक हूं,
मुझे दे दो
वो भीतर वाला शब्द
जो तुम्हारा है।