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भुण्डै होंवतै संसार माय / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
कित्तौ भलौ लागै
भाग पाटी सूरज देखणौ
देखणौ सूरज रै साथै-साथै
चीड़ियां रौ जागण
भंवरै नै देखणौ
फूलां पर डोलतां-
देखणौ है असल मांय !
हां - म्है उठां तो हां भागपाटी,
भाजां आपरै काम पर
जावां मिन्दर
लगावां फैरी भगवान रै नाम पर ।
पण कठै देख पावां आपां
किरणा रो कोमल नाच
मस्ती मांय झूमता गाछ
चहकता मोर ! हुलयता ढोर !
आज म्है देख्यौ:
भागपाटी रो सूरज
किरणा रौ कोमल नाच
मस्ती मांय झूंमता गाछ
चहकता मोर, हुलसता ढोर
सच मांय कीं ताळ जियौ म्है
इण भुण्डै होंवतै संसार मांय ।