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भुलना / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
संकोच
इस
बात का नहीं
कि
तुमने
इन चीजों को
सहेजा नहीं
समझा नहीं
वरना
दुख है मुझे
इस बात का
कि
तुम कितने लापरवाह हो
कि भूल जाते हो
बटुआ, घड़ी, छड़ी
क्यूं नहीं भूल जाते
कभी
घर की दिशा
मयखाने की गली भी
नहीं भूलते कभी