भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भुला गइल मनवा जान के / भगती दास
Kavita Kosh से
भुला गइल मनवा जान के।।
मत-गरभ में भगती कबूलल, इहाँ सुतल बाड़ तान के।।
एही कायागढ़ में पाँच गो सुहागिन, पाँचों सुतल बा एको नाहिं जाग के।।
क्हे भगती दास कर जोरी, एक दिन जमुआ लेइ जाई बान्ह के।।