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भूख का बाजार / ललन चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
भूखा आदमी भूख की चर्चा नहीं करता
सार्वजनिक नहीं करता इस निजी दुःख को
अपनी भूख मिटाने के लिए
कभी अनशन पर नहीं बैठता
भूख की तरह बचाता है
आखिरी सांस तक आत्म सम्मान को।
उसे बड़ा दुःख होता है
जब सभ्य लोग भूख पर सेमिनार करते हैं
खाए पिए अघाए लोग भूख को
स्वादिष्ट व्यंजन की तरह परोसते हैं
वह जानता है
भूख का भी एक बड़ा बाज़ार है
भूख सियासी युद्ध का एक हथियार है
भले ही किसी की जान निकल जाए भूख से
पर भूख किसी शातिर के लिए रोजगार है
यह कितनी बड़ी विडंबना है कि
भूख पर उसकी बात कभी नहीं सुनी जाती
जिसे बात करने का सर्वाधिकार है।