भूख का भोज / आर्थर रैम्बो / मदन पाल सिंह
ऑन ऑन !!
मेरी भूख हो जाती है चम्पत तुम्हारे गधे पर ।
यदि मेरा कोई स्वाद है तो उसका होना कोई बड़ी बात नहीं
यह तो मिट्टी और पत्थरों से ज़्यादा और किसी चीज़ के लिए नहीं बना।
तक-धिन, तक-धिन, मैं खाता हूँ लोहा
पत्थर और हवा ।
मेरी भूख, ओ मेरी तृष्णा, मुड़ जाओ
खा लो भूसे से भरे खेत
और फिर कर लो पान
लता-वल्लरियों में थरथराते विष का ।
खा लो पत्थर, जो तोड़ता है एक ग़रीब
गिरजाघरों में लगे प्रस्तर पुराने
सैलाब से बने कंकड़-पत्थर बिल्लोरी
धूसर घाटियों में बिखरी रोटियाँ !
मेरी भूख है काली हवा का अंश
नीले खुले आकाश की ध्वनि
यह मेरा उदर है जो देता है मुझे पीड़ा, मेरा दुर्भाग्य !
पृथ्वी पर है शाक और पत्तियाँ
मैं चाहता हूँ इनकी पत्तियों का गूदा
मैं चुन लेता हूँ
कोमल जामुनी शाक, सलाद।
ऑन ऑन !!
मेरी भूख हो जाती है गायब तुम्हारे गधे पर।
मूल फ़्रांसीसी भाषा से अनुवाद : मदन पाल सिंह