भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूख जब वे गाँव की पूरे वतन तक ले गए / नूर मुहम्मद `नूर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



भूख जब वे गाँव की पूरे वतन तक ले गए
मामला हम भी ये फिर शेरो-सुखन तक ले गए

हम इधर उसके दुपट्टे को रफ़ू करते रहे
वो, उधर शेरों को उसके तन-बदन तक ले गए

आग भी हैरान थी शायद ये मंज़र देखकर
जब उसे तहज़ीब-दाँ घर की दुल्हन तक ले गए

हम पिलाते रह गए अपना लहू हर लफ़्ज़ को
और वे बे-अदबियाँ सत्ता सदन तक ले गए

छेनियाँ, बसुँला, अँगूठे, उँगलियाँ ,ख़्वाबो-ख़याल
हम ही तहज़ीबों को उनके बाँकपन तक ले गए

जबकि हर तोहमत सही , भूखे रहे ए 'नूर' हम
फिर भी अपनी प्यास हम गंगो-जमन तक ले गए