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भूख से लड़ता रोज़ लड़ाई माँ का पेट / पवनेन्द्र पवन
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भूख से लड़ता रोज़ लड़ाई माँ का पेट
सूख गया सहता महँगाई माँ का पेट
मुफ़्त ले बैठा मोल लड़ाई माँ का पेट
देकर सबको बहनें भाई माँ का पेट
कोर निगलते ले उबकाई माँ का पेट
खा जाता है ढेर दवाई माँ का पेट
सड़कों पर अधनंगे ठिठुरे सोते हैं जो
उन बच्चों को एक रज़ाई माँ का पेट
मेहमाँ, गृहवासी, फिर कौआ, कुत्ता, गाय,
अंत में जिसकी बारी आई माँ का पेट
झिड़की-ताना, हो जाता है जज़्ब सब इसमें
जाने कितनी गहरी खाई माँ का पेट.