भूख / विशाखा विधु
कूड़े के ढेर से
खाना बीनते
बच्चे को देखकर
मेरे मन से 'छी ' तो निकला
परन्तु…. धिक्कार से भरा!
निश्चित ही मानवता के लिए
और…
खुद के मानव होने पर,
उसकी भूख ने व्याकुल कर दिया
मेरे मन को
सिहर उठी
यूँ तो जब भी घर में रोटी बनती
व्यर्थ ना जाने देती एक भी टुकड़ा
पर अब सोचती हूँ
इन व्यर्थ टुकड़ों ने ही कितनो का पेट भरा
व्यर्थ कहाँ हैं ये!!!!
अर्थ निकला इनका भी
जो है
मानवता के पतन को दर्शाता
वो पेट की भूख और.... ये कूड़े का ढेर
मानव और पशु के भेद को मिटाता
कुत्ते, गाय, सुअर और मानव
सभी एक जगह
और सभी का उदेश्य भी मात्र एक ही
“भूख मिटाना”
और सबको मिल भी जाता
धन्य है वो कूड़े का ढेर
धन्य है तू भाग्य-विधाता
एक बहुत बड़ा सत्य ये
मैंने जाना आज
कि ......
इस धरा पर नाममात्र भी व्यर्थ ना जाता।