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भूख : तीन / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
रूंख नै ही भूख
डाळी काढण री
डाळी माथै
हर्या काच्चा पान
पानां बिचाळै पुहुप
पुहुपां सूं बणता
मीठा फळ
फळ भखता
जीव-जिनावर
पण
कदै ई नीं ही भूख
घर री चौगाट
खाट
मेज-कुरसी बणन री
भूख तो पसरी
मिनख री
जकी जीमगी
समूळो रूंख!