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भूदृश्य / राजेन्द्र शर्मा

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दृश्य में इतना शोर है
कि आवाज़ें डूब गई हैं
और पहचानी नहीं जातीं
किसी भी तरह

चुप्पी भी व्यर्थ
और पुकार भी
इस देखने में अर्थ कितना
कहना मुश्किल
उससे भी गहरा संदेह
इस कहने में अर्थ जितना

उम्मीद की तरह है
दृश्य की भीड़ में एक हाथ
मुझे पुकारता सा हिलता हुआ
कभी-कभी दिख जाता है
मैं अपना हाथ उसे देता हूँ
एक उम्मीद की तरह

मैं दृश्य में शामिल होता हूँ
उम्मीद से भरा
कोई चौंकता नहीं
कोई टोंकता नहीं
कोई पूछता नहीं

मेरी उम्मीद नाकाफ़ी है
शोर के समुद्र में
डूबती-उतराती है
ज्वार में।