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भूलने की आदत ठीक नहीं / दिनकर कुमार

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भूलने की आदत ठीक नहीं
फिर भी
एक के बाद एक घटनाएँ-
दुर्घटनाएँ
भूल जाता हूँ

दर्द से बेहाल होकर गाने वाली
चिड़िया का नाम
रात-भर किसी को
आवाज़ देने वाली
चिड़िया का नाम
भूल जाता हूँ

शरत में खिलने वाले
उस फूल का नाम भी
याद नहीं रहता
जो सुबह होते ही
मिट्टी में मिल जाता है

भूल जाता हूँ
प्रेम के क्षण
घृणा के क्षण
क्रोध के क्षण
जिन क्षणों की याद में
सम्राटों ने
संगमरमर के स्तंभ बनाए
ऐसे समस्त असाधारण क्षणों को भी
भूल जाता हूँ

जिन शब्दों की शक्ति ने
जीवन को उज्ज्वल बनाया
और सपनों की दुनिया
रचने की क्षमता दी
उन शब्दों को भी
भूल जाता हूँ

लोग घाव को भूल जाते हैं
शत्रुता को भूल जाते हैं
कर्ज़ को भूल जाते हैं
कर्त्तव्य को भूल जाते हैं
सम्बन्धों को भी भूल कर
अर्जित करते हैं सुख

परन्तु मैं सुख के लिए
आत्मतृप्ति के लिए
भूल नहीं पाता
दिनचर्या की नागफनी की टीस
अर्थशास्त्र के विकराल जबड़े
की ज्यामिति

जब तक चेतना है
तब तक ही
हाँ, तब तक ही
शल्य-क्रिया का आतंक है
नशे की अवस्था में
नींद की अवस्था में
स्मृति सो जाती है

चेतना है तो दर्द है
यही वज़ह है कि
देश भूल जाता है इतिहास को
परम्परा को
सँस्कृति को
आबादी भूल जाती है-
भूख-प्यास-निरक्षरता-रोग
वोट-नोट-लोकतन्त्र-लाठीतन्त्र

घर से निकलने पर
रास्ता भूल जाता हूँ
परचून की दुकान जाना
भूल जाता हूँ
मित्रों को नववर्ष की बधाई देना
भूल जाता हूँ
शत्रुओं के चेहरे
भूल जाता हूँ

भूलने की आदत ठीक नहीं
फिर भी
जल्दबाज़ी में
जीवन की आपाधापी में
अपने आपको
भूल जाता हूँ ।