भूल पाए न थे ट्रेन का हादिसा / बिरजीस राशिद आरफ़ी



भूल पाए न थे ट्रेन का हादसा
आज फिर हो गया एक नया हादसा

जाने क्या हो गया आजकल दोस्तो
रोज़ होता है कल से बड़ा हादसा

बाप का साया और काँच की चूड़ियाँ
एक ही पल में सब ले गय हादसा

ऐ ख़ुदा, ईश्चर,गाड, वाहे गुरु
तेरे घर में भी होने लगा हादसा

मैं हूँ शायर, हक़ीक़त करूँगा बयाँ
साज़िशों को कहूँ, क्यों भला हादसा?

किसको फ़ुर्सत है,ये कौन सोचे यहाँ
हो गया किस गुनाह की सज़ा हादसा

तेरे घर के सभी लोग महफ़ूज़ हैं
भूल जा 'आरफ़ी' जो हुआ हादसा.

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