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भूल भुलैयाँ / रेशमा हिंगोरानी
Kavita Kosh से
रेज़ा-रेज़ा,
बिखरता जाए है,
वुजूद अपना,
पुर्ज़ा-पुर्ज़ा,
हुई जाए है अब,
क़िताब-ए-हयात,
रोके रुकता नहीं,
हालात का सैलाब, ए दोस्त,
थामे थमता नहीं,
बर्बादियों का दौर, ए दोस्त,
राह दिखती है,
तो मंजिल नज़र नहीं आती,
पहुँच भी जाऊँ तो,
पेहचान मैं नहीं पाती,
अजब सी
भूल भुलैयाँ है ज़िंदगी, प्यारे!
बला आती तो है, वापस मगर नहीं जाती!
मई 1994