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भेंट होना भी है मुश्किल चाँद-तारों से / कैलाश झा ‘किंकर’

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भेंट होना भी है मुश्किल चाँद-तारों से
स्वप्न में होती हैं बातें बस इशारों से।

क्या हुआ मायूस क्यों हैं बोलिए साहब
रोग सारे भागते नग़्मा-निगारों से।

चार दिन की ज़िन्दगानी बोल-हँस लें हम
मिल सकी किसको ख़ुशी इन चन्द्रहारों से।

शोखियाँ जीवन की अनुपम भेंट कुदरत की
शोभता है घर तो यारों-राज़दारों से।

मंज़िलें कोई भी मुश्किल हैं नहीं उनकी
जो मुसलसल तैरकर लगते किनारों से।