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भेदे जो बड़े लक्ष्य को वो तीर कहाँ है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
भेदे जो बड़े लक्ष्य को वो तीर कहाँ है
वेा आइना है किन्तु वो तस्वीर कहाँ है।
कविता में तेरी छंद- अलंकार बहुत हैं
कविता में आदमी की मगर पीर कहाँ है।
इस देश में सब कुछ है अगर यह बताइये
इस देश में मज़लूम की तकदीर कहाँ है।
वह फ़िक्रमंद है फ़क़त कुर्सी के वास्ते
हालात पे इस देश के गंभीर कहाँ है।
दावे विकास के हैं मगर खोखले सभी
तालाब तो बहुत हैं मगर नीर कहाँ है।
देखा ज़रूर था कभी मैंने भी एक ख़़्वाब
देखा नहीं उस ख़्वाब की ताबीर कहाँ है।