भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भेद-अभेद / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
माटी री
मुलक
फूल,
माटी री
कसक
सूळ,
माटी रो
आणंद
फल
जकै रै
खोलियै में
सिरजण धरमी
बीज !