भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भेद अतीत एक स्वर उठता- / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...:
निकट, निकटतर, निकटतम
हुई चिता के अरथी, हाय,
बापू के जलने का भी अब, आँखें, देखो दृश्य दुसह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...:
चंदन की शैया के ऊपर
लेटी है मिट्टी निरुपाय
लो अब लपटों से अभिभूषित चिता दहकती है दह-दह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...:
अगणित भावों की झंझा में
खड़े देखते हैं हम असहाय
और किया भी क्या...ऽ जाय,
क्षार-क्षार होती जाती है बापू की काया रह-रह।
भेद अतीत एक स्वर उठता-
नैनं दहति पावक...: