Last modified on 3 दिसम्बर 2009, at 20:47

भेद अतीत एक स्‍वर उठता- / हरिवंशराय बच्चन


भेद अतीत एक स्‍वर उठता-

नैनं दहति पावक...:

निकट, निकटतर, निकटतम

हुई चिता के अरथी, हाय,

बापू के जलने का भी अब, आँखें, देखो दृश्‍य दुसह।


भेद अतीत एक स्‍वर उठता-

नैनं दहति पावक...:

चंदन की शैया के ऊपर

लेटी है मिट्टी निरुपाय

लो अब लपटों से अभिभूषित चिता दहकती है दह-दह।


भेद अतीत एक स्‍वर उठता-

नैनं दहति पावक...:

अगणित भावों की झंझा में

खड़े देखते हैं हम असहाय

और किया भी क्‍या...ऽ जाय,

क्षार-क्षार होती जाती है बापू की काया रह-रह।

भेद अतीत एक स्‍वर उठता-

नैनं दहति पावक...: