भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भेल बेसुरा प्रेम तराना / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
अपने घर में लोग बेगाना समय अभी के कइसन हे।
बिखर रहल नित ताना-बाना समय अभी के कइसन हे।।
लाख जतन करके जोड़े कोय जर-जमीन बढ़िया घरवार।
ओकरे नञ कोय ठौर-ठिकाना समय अभी के कइसन हे।।
अपने सुख में लोग भुलल तब दरद पराया की जानय।
केतना अब खुदगरज जमाना समय अभी के कइसन हे।।
मरे-मिटे ककरो ले कतनों कुछ नञ मान एकर अखनी।
हित सधते अंगुठा दिखलाना समय अभी के कइसन हे।
केकरा पर बिसवास करे घाती तो एक से बढ़ के एक।
मउका मिलते डंक लगाना समय अभी के कइसन हे।
भाव कहाँ रिस्ता-नाता के ई सब बीतल बात बनल।
भेल बेसुरा प्रेम-तराना समय अभी के कइसन है।।
‘नेकी कर दरिया में डाल ऽ’अरथ एकर बिलकुल सच्चा।
माने लगल हे दिल दीवाना समय अभी के कइसन हे।।