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भेष भये विष भावै न भूषन भूख न भोजन की कछु ईछी / देव
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भेष भये विष भावै न भूषन भूख न भोजन की कछु ईछी ।
देवजू देखे करै बधु सो मधु दूध सुधा दधि माखन छीछी ।
चँदन तौ चितयो नहिँ जात चुभी चित माँहि चितौनि तिरीछी ।
फूल ज्योँ सूल सिला सम सेज बिछौननि बीच बिछी मनौ बीछी ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।